[100+] top Hindi Shayari ( हिंदी शायरी ) Shayari Love in Hindi (बेस्ट लव शायरी), Shayari in Hindi,( रोमांटिक शायरी), Romantic Shayari


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आँखों में जो भर लोगे तो काँटों से चुभेंगे
ये ख़्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं

तेरे आने की क्या उमीद मगर कैसे कह दें कि इंतिज़ार नहीं

फ़िराक़ गोरखपुरी


 बंदगी हमने छोड़ दी फ़राज़ क्या करें लोग जब खुदा हो जाएं " अहमद फ़राज़


आँखों में जो भर लोगे तो काँटों से चुभेंगे
ये ख़्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं


बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं ।तुझे ऐ ज़िन्दगी हम दूर से पहचान लेते हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

 जिस तरह तुम गुजारते हो फ़राज़ जिंदगी उस तरह गुज़रती नहीं " अहमद फ़राज़


आँखें जो उठाए तो मोहब्बत का गुमाँ हो
नज़रों को झुकाए तो शिकायत सी लगे है


तुम मुख़ातिब भी हो , क़रीब भी हो तुमको देखें कि तुम से बात करें ।फ़िराक़ गोरखपुरी


 जिस व्यक्ति ने कभी गलती नहीं की , उसने कभी कुछ नया करने की कोशिश नहीं की " अहमद 
फ़राज़


अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें

कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं








एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं 



फ़िराक़ गोरखपुरी



  वो रोज़ देखते हैं डूबते हुए सूरज को फ़राज़ , काश मैं भी किसी शाम का मंज़र होता " अहमद फ़राज़


इतने मायूस तो हालात नहीं
लोग किस वास्ते घबराए हैं


अब आ गये हैं आप तो आता नहीं है याद वर्ना कुछ हमको आपसे कहना ज़रूर था

 फ़िराक़ गोरखपुरी



 शायद खुशी का दौर भी आ जाए । एक दिन फ़राज़ , ग़म भी तो मिल गये थे तमन्ना किये बगैर " अहमद फ़राज़


आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो
साया कोई लहराए तो लगता है कि तुम हो





इक उम्र कट गई है ।तिरे इंतिज़ार में ऐसे भी हैं कि कट न सकी जिन से एक रात

 फ़िराक़ गोरखपुरी



 अब मायूस क्यों हो उसकी बेवफ़ाई पे फ़राज़ , तुम खुद भी तो कहते थे । कि वो सबसे जुदा है" अहमद फ़राज़

 इन बारिशों से दोस्ती अच्छी नहीं फ़राज़ , कच्चा तेरा मकान है कुछ तो ख्याल कर " अहमद फ़राज़


 कौन देता है उमर भर का सहारा ऐ फ़राज़ , लोग जनाज़े में भी कांधे बदलते रहते हैं " अहमद फ़राज़

 सोचा था कि वो बहुत टूट कर चाहेगा हमें फ़राज़ , लेकिन चाहा भी हम ने और टूटे भी हम " अहमद फ़राज़



आज तो मिल के भी जैसे न मिले हों तुझ से
चौंक उठते थे कभी तेरी मुलाक़ात से हम





तेरे आने की क्या उमीद मगर कैसे कह दें कि इंतिज़ार नहीं 



फ़िराक़ गोरखपुरी
 मेरे जज़्बात से वाकिफ़ है मेरा कलम फ़राज़ , मैं प्यार लिखू तो तेरा नाम लिख जाता है " अहमद फ़राज़

 किसी से जुदा होना अगर इतना । आसां होता फ़राज़ , जिस्म से रूह को लेने कभी फ़रिश्ते ना आते " अहमद फ़राज़


दिल्ली कहाँ गईं तिरे कूचों की रौनक़ें
गलियों से सर झुका के गुज़रने लगा हूँ मैं




ग़रज़ कि काट दिए जिंदगी के दिन ऐ दोस्त वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में
फ़िराक़ गोरखपुरी

 तेरे बाद न आएगा मेरी ज़िंदगी में कोई और फ़राज़ , एक मौत है कि जिसकी हम कसम नहीं देते " अहमद फ़राज़


मैं जब भी उस के ख़यालों में खो सा जाता हूँ
वो ख़ुद भी बात करे तो बुरा लगे है मुझे




बद-गुम हो के मिल ऐ दोस्त जो मिलना है तुझे ये झिझकते हुए मिलना कोई मिलना भी नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी



 ये वफ़ा तो उन दिनों कि बात है फ़राज़ , जब मकान कच्चे और लोग सच्चे हुआ करते थे " अहमद फ़राज़




जब लगें ज़ख़्म तो क़ातिल को दुआ दी जाए
है यही रस्म तो ये रस्म उठा दी जाए






मैं हूँ दिल है तन्हाई है ।तुम भी होते अच्छा होता

 फ़िराक़ गोरखपुरी ।

 वो बात - बात पे देता है परिदों की मिसाल साफ़ साफ़ नहीं कहता मेरा शहर ही छोड़ दो" अहमद फ़राज़


और क्या इस से ज़ियादा कोई नर्मी बरतूँ
दिल के ज़ख़्मों को छुआ है तिरे गालों की तरह


हो जिन्हें शक , वो करें और खुदाओं की तलाश हम तो इन्सान को दुनिया का खुदा कहते हैं ।

फ़िराक़ गोरखपुरी



 मैं खुदा की नज़रों में भी गुनहगार होता हे फ़राज़ , कि जब सजदों में भी वो शख़्स मुझे याद आता है " अहमद फ़राज़







काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब'
शर्म तुम को मगर नहीं आती

मिर्ज़ा ग़ालिब


कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है
मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी |
जावेद अख़्तर




अगर पलक पे है मोती तो ये नहीं काफ़ी
हुनर भी चाहिए अल्फ़ाज़ में पिरोने का | जावेद अख़्तर


क्यों डरें जिंदगी में क्या होगा
कुछ नहीं होगा तो तजुर्बा होगा | जावेद अख़्तर

गलत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत है फ़ायदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता ।| जावेद अख़्तर




जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल रस्तो का सफ़र अच्छा नहीं लगता | जावेद अख़्तर


तुम ये कहते हो कि में गैर हूं फिर भी शायद
निकल आए कोई पहचान ज़रा देख तो लो | जावेद अख़्तर


बहाना ढूँडते रहते हैं कोई रोने का
हमें ये शौक़ है क्या आस्तीं भिगोने का | जावेद अख़्तर

ये ज़िंदगी भी अजब कारोबार है कि मुझे
ख़ुशी है पाने की कोई न रंज खोने का | जावेद अख़्तर

याद उसे भी एक अधूरा अफ़्साना तो होगा
कल रस्ते में उस ने हम को पहचाना तो होगा | जावेद अख़्तर




है पाश पाश मगर फिर भी मुस्कुराता है
वो चेहरा जैसे हो टूटे हुए खिलौने का | जावेद अख़्तर


 हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर (कवि)बहुत अच्छे
कहते हैं कि 'ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयाँ और

मिर्ज़ा ग़ालिब


 हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है

मिर्ज़ा ग़ालिब


 हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले

मिर्ज़ा ग़ालिब


 मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर(माशूका)पे दम निकले

मिर्ज़ा ग़ालिब


 उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है

मिर्ज़ा ग़ालिब


 ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार(प्रेमी से मिलना)होता
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता

मिर्ज़ा ग़ालिब




 हुई मुद्दत कि 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता है
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता

मिर्ज़ा ग़ालिब


 इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने

मिर्ज़ा ग़ालिब


 इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के

मिर्ज़ा ग़ालिब




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