आज हम अहमद फ़राज़Ahmed Faraz की शायरी से आप सभी को वाकिफ़ कराएगे तो पेस है टॉप १५ अहमद फ़राज़Ahmed Faraz की शायरी /इमेज के साथ अहमद फ़राज़ Ahmed Faraz शायरी पर उस से पहले अहमद फ़राज़ Ahmed Faraz जी का जीवन परिचय }
अहमद फ़राज़ Ahmed Faraz का जन्म (14 जनवरी 1931) को पाकिस्तान के नौशेरां शहर में हुआ था। अहमद फ़राज Ahmed Faraz का असली नाम सैयद अहमद शाह है। वे आधुनिक उर्दू के सर्वश्रेष्ठ रचनाकारों में गिने जाते हैं। और उनको आधुनिक युग का ग़ालिब भी माना जाता हैं, इन्हें इनकी बेहतरीन ग़जलों, नज्मों और शायरी के लिए जाना जाता हैं। इन की मृत्यु (25 अगस्त 2008(77 वर्ष) इस्लामाबाद, पाकिस्तान में हुई
बंदगी हमने छोड़ दी फ़राज़ क्या करें लोग जब खुदा हो जाएं । " अहमद फ़राज़
जिस तरह तुम गुजारते हो फ़राज़ जिंदगी उस तरह गुज़रती नहीं। " अहमद फ़राज़
जिस व्यक्ति ने कभी गलती नहीं की , उसने कभी कुछ नया करने की कोशिश नहीं की । " अहमद फ़राज़
वो रोज़ देखते हैं डूबते हुए सूरज को फ़राज़ , काश मैं भी किसी शाम का मंज़र होता। " अहमद फ़राज़
शायद खुशी का दौर भी आ जाए । एक दिन फ़राज़ , ग़म भी तो मिल गये थे तमन्ना किये बगैर । " अहमद फ़राज़
अब मायूस क्यों हो उसकी बेवफ़ाई पे फ़राज़ , तुम खुद भी तो कहते थे । कि वो सबसे जुदा है। " अहमद फ़राज़
इन बारिशों से दोस्ती अच्छी नहीं फ़राज़ , कच्चा तेरा मकान है कुछ तो ख्याल कर । " अहमद फ़राज़
कौन देता है उमर भर का सहारा ऐ फ़राज़ , लोग जनाज़े में भी कांधे बदलते रहते हैं । " अहमद फ़राज़
सोचा था कि वो बहुत टूट कर चाहेगा हमें फ़राज़ , लेकिन चाहा भी हम ने और टूटे भी हम । " अहमद फ़राज़
मेरे जज़्बात से वाकिफ़ है मेरा कलम फ़राज़ , मैं प्यार लिखू तो तेरा नाम लिख जाता है। " अहमद फ़राज़
किसी से जुदा होना अगर इतना । आसां होता फ़राज़ , जिस्म से रूह को लेने कभी फ़रिश्ते ना आते । " अहमद फ़राज़
तेरे बाद न आएगा मेरी ज़िंदगी में कोई और फ़राज़ , एक मौत है कि जिसकी हम कसम नहीं देते । " अहमद फ़राज़
ये वफ़ा तो उन दिनों कि बात है फ़राज़ , जब मकान कच्चे और लोग सच्चे हुआ करते थे। " अहमद फ़राज़
वो बात - बात पे देता है परिदों की मिसाल साफ़ साफ़ नहीं कहता मेरा शहर ही छोड़ दो। " अहमद फ़राज़
मैं खुदा की नज़रों में भी गुनहगार होता हे फ़राज़ , कि जब सजदों में भी वो शख़्स मुझे याद आता है। " अहमद फ़राज़
तो लीजिए आप के लिए अहमद फ़राज की एक मशहूर ग़ज़ल जिसका नाम है
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
अहमद फ़राज़
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें
आज हम दार पे खींचे गए जिन बातों पर
क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें
अब न वो मैं न वो तू है न वो माज़ी है 'फ़राज़'
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें
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